अपनी खुरदुरी आवाज़ पर महबूब शायर की किसी ग़ज़ल का लेप करना, वक़्त के एक टुकड़े को कर लेना रेशम, आँखों की कोर में बो देना ओस की बूँदें, दिल से मुट्ठी भर आँच निकाल कर सेंक देना गीली नदी, ख़्वाब उछालना ब्रिज से और पानी के बीचोंबीच बैठे चाँद को कंपकंपा देना.
सिर घुमाना हौले से, पीछे खड़े ज़ालिम से कहना अपनी खन-खन हँसी में कि,
रुला मुझे रज्ज रज्ज के अज्ज मेरा जी करदा...
~ हीर
- बाबुषा