कुछ दिन पहले मेरे phone पे,
Notifications की एक लड़ी सी बजी।
मानो की किसी ने कुछ 15-20 messages
एक साथ भेजे हो,
कुछ तत्काल मालूम पड़ता है।
देखा तो मेरे लौंडो वाला group भी,
डर और शर्म से मूह झुकाए चुप सा था।
कुछ ऊपर नीचे scroll किया,
तो मालूम पड़ा, किसी boys locker room की बात हो रही थी।
एक एक करके messages जब मैंने पढ़े,
मेरे अंदर का मर्द आज दोबारा शर्मसार हो गया।
झुक गयी नज़र इस ज़माने के परे,
रुक सा गया मैं,
फिरसे अपनो से हारे।
क्या हम आज भी,
उसी रोज़ में जी रहे!
उस दिल्ली के अंधेरी रात के,
साये में सिमटे हुए।
क्या आज भी हमने कुछ नहीं सीखा!
या फिर सोचा
की शायद यही है प्रतिबिम्ब,
मेरे और तुम्हारे समाज का।
अरे छोरे, तुझे मर्द होने का,
किस बात पे घमंड है!
खुद का कमाया भी नहीं,
जो लटक रहा तेरे टांगो के बीच में।
और तू चला अपनी बहनो को नापने।
Boys will be boys का रोना मत शुना।
ऐसी ओछि हरकत तो जानवर ना करे,
इंसान होके भी तूने
किसी के बहन, किसी की बेटी,
किसी के दोस्त के लिए ऐसे शब्द चुना।
ग़लती तेरी नहीं, शायद
तेरे पैदा करने वालों की है,
शायद पहले दिन ही ज़ोर का,
पड़ा होता तुझे एक तमाचा।
सीखा होता तू भी शायद,
इज़्ज़त की एक दो भाषा।
एक बात तो सच कर दी,
हम आज भी न सीखे अपने आप से।
अगर मेरे बच्चे निकले तुझ जैसे,
मर जाएँगे वोह पहली गलती में।
कोई बचा ना पाएगा उन्हें,
अपने बाप से।
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