मेरे जीवन के अँधेरे बड़े कमरे में
एक दीप प्रकाशित था
ये मेरे विश्वास की कल्पना का
दीप था।
उस कल्पना का जिसमे
तुम्हारा प्रेम युगों युगों तक सिर्फ
मेरे लिए समर्पित था।
मैंने उसी दीप तले के अँधेरे
में अपने भविष्य को प्रकाशवान किया था।
मैं उस कल्पना में भी नहीं चाहता था कि
यथार्थ के धरातल पर तुम्हारा प्रेम
मेरे ह्रदय की मिट्टी में जड़ पकड़े
और उससे सत्य और सौंदर्य की घास उगे।
क्यूंकि तुम्हारा प्रेम सूर्य की तरह था
जिसे ना तो मेरे जीवन का अँधेरा सहन कर
सकता था
ना ही मेरी आँखों का भविष्य।
परन्तु दुर्भाग्य से ही मेरे जीवन में
शीघ्र ही यथार्थ का वो तूफ़ान आया
जिसने उस कल्पना का दीप तो बुझाया ही
मेरे भीतर की उम्मीद की किरन को भी साथ ले गया।
अब मेरे पास ना वो दीप है
ना तुम हो
और ना ही वो अँधेरा है
जिसमे मैं अपनी कुंठा
में बिना किसी की नज़र में आये आंसू बहा सकूँ।
और ना ही वो किरन है
जो काले घने बादलों के बीच
आत्मविश्वास की लकीर की तरह चमके
जिससे मैं अपने भविष्य के आकाश पर
जीवन का कोई चिह्न छोड़ सकूँ।।।।
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