Arvind Kumawat   (Arvind)
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Joined 15 January 2017


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27 OCT 2019 AT 14:38


दीप देह है स्नेह-सिक्त आभा है शिखा
राम-जानकी के प्रसंग में हमें यही दिखा
मेल दीप बाती का प्रकाश हेतु है लिखा
"राम" शब्द "जानकी" बिना दिखा तो क्या दिखा

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3 SEP 2018 AT 19:02

मेरे मन में कहीं बेख़याली सी है
पलकें बेचैन आँखें सवाली सी हैं
आरती कोई होठों पे ठहरी हुई
अंजुरी जैसे पूजा की थाली सी है


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29 AUG 2018 AT 9:31

ज़ाफ़रानी हवा मेरा मन ले चली
मेरे फ़ैलाव का आयतन ले चली
दूर इतनी कि इक उम्र भी कम पड़े
पास इतनी कि मन की छुअन ले चली

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28 AUG 2018 AT 22:22

ग़म की बारिश थमी थी कि तुम आ गए
आँख में कुछ नमी थी कि तुम आ गए
कुछ न था इस अधूरी सी दुनिया में बस
इक तुम्हारी कमी थी कि तुम आ गए

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28 JUL 2018 AT 1:12

उम्र भर को अकेला तुम्हारे लिए
देखता जग का मेला तुम्हारे लिए
चाह आँखों से बाहर नहीं जा सकी
मैंने क्या क्या न झेला तुम्हारे लिए

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9 JUL 2018 AT 18:05

उसकी आस मेरे लिए हवा और पानी है
पानी के किसी बुलबुले सी ये कहानी है
मैं कई जन्मों से उसी की राह तकता हूँ
मैं अगर हूँ मिट्टी तो वो आसमानी है

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3 JUL 2018 AT 18:09

जो दुनिया के बाहर है
वो सब मेरे अन्दर है

मुझसे मिलने आए थे
मैं बोला वो बाहर है

Full Ghazal : Caption


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3 JUL 2018 AT 17:34

बहुत दिन हो गए मिले तुझसे
इतने बढ़ गए फ़ासले तुझसे !
तिरे सिवा हमें ध्यान किसका
किसी से मिले तो मिले तुझसे

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3 JUL 2018 AT 17:23

तुझको पढ़ना छोड़ दिया
तब से लिखना छोड़ दिया

बस दुनिया की सुनता हूँ
मैंने कहना छोड़ दिया
Full Ghazal : Caption

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3 JUL 2018 AT 12:01

हालातों से सौदा कर रहा हूँ मैं
ख़ुद से कोई वादा कर रहा हूँ मैं
जिस्म को आख़िर रूह से अलग करके
ख़ुद को तुझ से जुदा कर रहा हूँ मैं

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