मैं दशानन, मैं लंकेश
मैं ही तो वो रावण हूँ
झांको जरा स्वयं के अंदर
मैं तुम सब से पावन हूँ
नहीं रोकूँगा तुम्हे कभी मैं
आओ तुम मेरा दहन करो
उस से पहले अपने अंदर
श्री राम को तुम वहन करो
काम क्रोध लोभ मोह माया
इनका तुम संहार करो
रावण से श्री राम बनो
और स्वयं का उद्धार करो।
©अनूप अग्रवाल(आग), भुवनेश्वर, ११/१०/१६, विजयदशमी।
- A.AG.