जो छीने थे ना हम ने उससे
उसे वो वापस भी मिल जाएगी ।
सर्दी प्रतिशोध की जलन बुझाएगी,
ऊँचाईयों को सफेद चादर में ओंठकर।
धूप दिल की सूनापन से नये बीज उगाएंगे,
किरणों के चमकते चादर में छुपाकर।
बारिश खालीपन सारे ही भर देगी,
बूंदों की नमीसी चादर बिछाकर ।
मिल जाएगी उसे धीरे धीरे,
हरियाली की वो चादर
जो हमने उससे छीनी थी।
पर देर बहुत हुई होगी,
सोच की, समझ की, हसी की, जज्बातों की
वो चादर फिरसे बुनने में, जो इनसान जाने जाते है।।
- Anushka Diya