23 APR 2017 AT 21:23

' किताब'

मैं कभी किसी को तुम्हें उधार भी नहीं देता,
भला कोई अपनी महबूबा किसी को उधार देता है
जब कभी तुम्हारे शब्दों को उसके अर्थों में घोलकर पी रहा होता हूँ तो तुम्हारा मौन दहाड़ रहा होता है
तुम बड़ी बातूनी हो सोने ही नही देती,पर
तुम्हारे एक एक शब्द पर मैं कई कई रातें कुछ सेकेंडों में गुजार दिया करता हूँ,
तुम मेरे जीवन में रेडियो की आवाज़ की तरह हो जिसके बिना रेडियो कबाड़ हो जाता है
चलो तुम हो तो मैं जिंदा हूँ नहीं तो इस खामोश दुनिया में जहाँ लोगों के पास खुद के लिए वक्त नहीं मेरे लिए कौन निकालता।
(Rest in Caption)

- अनुभव