शजरों के लाख मनाही के बाद भीख़िज़ाँ आई और काट के ले गई पत्ते शाखों सेवो चाहता तो अपनी अंगड़ाई में समेट लेता पत्तेअफ़सोस, उसे अपनी काबिलियत का इल्म कहाँ था - अंश
शजरों के लाख मनाही के बाद भीख़िज़ाँ आई और काट के ले गई पत्ते शाखों सेवो चाहता तो अपनी अंगड़ाई में समेट लेता पत्तेअफ़सोस, उसे अपनी काबिलियत का इल्म कहाँ था
- अंश