Anshul Joshi   (अंश)
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Joined 22 March 2017


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27 MAY 2019 AT 1:37

शायद हमारी मोहब्बत का रास्ता
वो सड़क थी
जो बच्चे 'दरवाइंग' में बनाया करते थे
हाँ वहीं सड़क जो कहीं नहीं जाकर भी
मंज़िल तक पहुँचती थी

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15 MAY 2019 AT 21:39

मैं तुम तक तो पहुँच जाऊँगा
मगर मेरे एहसासों को पहुँचने में देर लगेगी
ये निकलेंगे ज़हन से
फिर उन्हीं रास्तों पर
गुज़रे पलों की तस्वीरें देखकर
रुक जाएंगे
'नाराज़गी की गाड़ी' के पीछे
आगे बढ़ जाने का
'हॉर्न' भी बजाएंगे
बहुत से सिग्नल हैं
और हर सिग्नल पर ये रुकेंगे
कुछ देर के लिए ही सही
कैसे बताऊँ तुम्हें
यह सड़क का ट्रैफिक जाम
ज़हन के ट्रैफिक जाम के आगे कुछ भी नहीं

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3 APR 2019 AT 2:25

उसके,घर के थे नीले पर्दे
सोफे पे रखा मैरून 'कुशन'
दो कमरों के बीच से कटता
था उसका मॉडर्न सा किचन
बॉलकनी में झूला था
पाला था कुत्ता "पोमेरेनियन"
देख के उसका घर,आँखों में
गुज़रे पलों की धूल गई
निभाए वादे उसने सारे
बस साथ निभाना भूल गई

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16 MAR 2019 AT 14:30

जब पलट कर देखता हूँ वो छिप जाता है
न जाने मेरा साया मुझसे डरता क्यों है

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9 MAR 2019 AT 18:06

एक खिलौने का
एक सिरा मैंने पकड़ा
और दूसरा सिरा तुमने
हम दौड़े थे अलग अलग सम्त
और गिर पड़े ज़मीन पर
खफ़ा हो गए एक दूसरे से
ना मैंने हाथ बढ़ाया
ना तुमने आगे हाथ किया
हम दोनों वहीं ज़मीं पर रहे
जहाँ बढ़ती गई अनबन
और कुछ दूर हमसे
गिरा था वो खिलौना
कि जिसको देखते देखते
गुज़र गया बचपन

©अंश

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26 FEB 2019 AT 2:36


उसे पाने की आरज़ू है, वो पड़ोस में ही रहती है
ना ही उसका नंबर है, ना 'फेसबुक' पे दोस्ती है

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17 FEB 2019 AT 2:55

गलत को सही समझ कर
गलत करना
और उसे सही समझना
गलत है

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14 FEB 2019 AT 4:55

'आसमाँ' किसी 'ऑडिटोरियम' की
छत सा लगता है
जहाँ की 'लाइट्स' को घटा-बढ़ा कर
सुब्ह, दोपहर, शब और रात
वक़्त के हिसाब से
मंच के हवाले किए जाते है

©अंश

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21 JAN 2019 AT 13:09

मेरे घर से एक इमारत दिखती है
जहाँ से मेरा घर इमारत लगता है

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16 JAN 2019 AT 9:45

ईश्वर ने
अलग अलग रंग रूप के इंसान बनाए
इंसान ने
अलग अलग रंग रूप के ईश्वर बना दिए

बिना कुछ बोले कह दिया गया
तुम इतने भी खास नहीं हो इंसान से
ये आदमी का बदला था भगवान से

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