22 APR 2017 AT 23:28

नहीं करता अब मन तुमसे मिलने का,
न ही तुम्हारी मिश्री में घुली आवाज़ सुन ने का,
न ही देखते हैं तुम्हारी फ़ोटो रोज़ बदलते हुए,
न करता है दिल तुम्हे रोकें देखें तुम्हें जाते हुए।
अब तो बस यादें हैं,
भूली बिसरी,
पुरानी सी,
नन्ही बातें हैं।

- अभिन्न