बेतरतीब से ढेरों ख्यालों में मैं आस बांध कर बैठा हूँ दुनिया भर के किस्सों में मैं उलझा उलझा रहता है कोई बात जुबानी करता है मैं बात रूहानी सुनता हूँ नुक्कड़ गलियों और मोड़ों पर मैं खुद से मिलता रहता हूँ
यूं जो मैं नज़रें झुकाये बैठा हूँ खुद के ख़िलाफ बैठा हों ये सब बेवज़ह नहीं पर वजह सिर्फ तुम जानती हो अगर नहीं तो मेरी आखों मैं ठहरकर कर कह दो कि तुम मेरे रहबर नहीं तुम्हे इतनी भी ख़बर नहीं फिर तुम कौन हो ये सवाल तुमसे नहीं पूछूँगा तुम आख़िर हो क्या बस इतना ही देखूंगा