वह दर्द भला मैं क्या बांटु ;जो दर्द किसी को दिखा नहीं सब छोड़ तड़पता चले गए ;बस दर्द ही था जो हिला नहीं
अब दर्द बसा है सीने मे ,आँखों मे बसी चिंगारी है
यह प्रीत भले ही पीड़ बड़ी ,अब पीड़ा भी हमे प्यारी है
हाथों से फिसलती रेत सदा ,बिखरें सपने जग जाने से
कब रोक सके ये तथ्य मुझे , सपनो मे रेत सजाने से
चाहे ईठलाये दुर खड़ी , मंजील वह अब भी हमारी है
यह प्रीत भले ही पीड़ बड़ी ,अब पीड़ा भी हमें प्यारी है .
सपने झूठे ? मिट्टी झूठी ? झूठा विश्वास दीवाने का ?
मेरा मन यह क्यो माने ; झूठा एहसास ज़माने का !
जो चाहा है वह पाने की , छोटी सी ज़िद हमारी है
यह प्रीत भले ही पीड़ बड़ी ,अब पीड़ा भी हमें प्यारी है .
-adi
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