अभिजीत   (अभिजीत जनार्दन)
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Associate Producer @aajtak
फाॅलो बैक का वादा रहा..!
Joined 13 February 2017


Associate Producer @aajtak
फाॅलो बैक का वादा रहा..!
Joined 13 February 2017

फिर गिराएंगे लोग अपनाकर,
बाज़ ना आएंगे दगा देकर.
तुम ना कोई नयी कहानी रचो,
लोग जाएंगे दिल को बहलाकर.
कुछ नहीं कहना उन लतर से मुझे,
जो खिले आज, हमें मुरझाकर.
रही उम्मीद, बचे ख़्वाब, आशिकी थोड़ी;
दीये की रौशनी, बारिश; वो रंगो-आब होली!
किसके वादे इरादे बदले हैं,
छोड़ो भी क्या फकत वफा करतें..
घुटन के दिन, तड़प की रात सभी-
जिंदगी! हम चलें सदा देकर.
🙏

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17 APR AT 1:01

पिता ने परवरिश में बेजां ईमानदारी थोप दी,
मां ने दुश्मनों से भी गले मिलना सिखा दिया.
शहर की धूप-धूल फांक रहा मैं सोचता हूं,
ईमानदारी, प्यार से आखिर हासिल क्या किया?
❤️

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16 APR AT 1:15

इश्क़ में हादसे जरूरी थे,
ये ना मिलते तो जज्बे आते नहीं;
हम अपने आप को यूं भाते नहीं.
खामोशी ओढ़कर हर गम पर मुस्कराते नहीं!
घुटती सांसों को लिए देर तक जी पाते नहीं.
जो हमें नाज़ से भर देते कल के अरमां सब,
वो मुझे सरेआम ख्वाब में ठुकराते नहीं.
हम नज़र भर उम्मीदों को तकते रहे,
चांद था, रात थी; ख़्वाब का था असर!
#ishq

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8 APR AT 19:07

जिनको लिखना नहीं आता,
या जो लिखते नहीं
उनकी भी कहानी होती है।

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8 APR AT 13:46

क्या है अपने पास?
सिहरता मन, उखड़ती सांस!
जीवन संघर्ष, आस-विश्वास.
मुश्किल बीत रहे थें कम,
तभी मिलता तपाक् से गम.
फिर हारा मोह जाल में सर्व,
नहीं छूटा ह्रदयादिक गर्व!
मगर सब दांव लगाकर देखा,
नहीं अंतस प्रवास की रेखा.
जमीं का सुनता रहा उच्छवास,
बड़ा था एकाकी आकाश.
वो जिसके जीवन में बस हर्ष,
जिसका बना रहा उत्कर्ष.
नहीं ऐसा ना कभी हुआ,
कि जीव ने दुख को नहीं छुआ!
#literature

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6 APR AT 9:58

बाजार खुला है सब तो यहां पर बिकना है!
दिल के मुक़ाबिल देह में दम ही कितना है,

आज़ाद परिंदे चाहे तो आकाश फांद लें,
पर देर सवेर डालियों पर ही टिकना है.

ये अक्ल के मारे लोग बड़े दिलवाले हैं,
कोई नहीं फरेब जैसे हैं वैसा ही दिखना है.

क्यों फिर से जरूरत और रवायत में फंसना,
मन टटोलकर रस्म निभाओ जितना है.

आखिरी तमन्ना गिरवी है जनतंत्र में अपने,
फैसला नहीं, चुनाव तय करे किन हाथों में टिकना है.

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6 APR AT 8:57

मुझे लगा था,
साथ भले ना दे मेरी परछाई;
मुश्किल में तो साथ रहेंगे अपने भाई!
पर अहा! कसक ये साल रही मन को मेरे,
सब मौकापरस्ती देख रहा उनके बहुतेरे.
बचपने जो मेरा मन बहलाने को हारा करता,
अब मुझको हराने के मनसूबे दिल में पाल रहा.
मां बाप के नक्श देख चुप हो जाता हूं,
मन में दबा लेता हूँ सब;
कुछ बोल नहीं पाता हूँ!
#भाई

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6 APR AT 0:51

कोई मुश्किल देकर हल छोड़ दिया,
कोई हल देकर मुश्किल मोड़ दिया!

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28 MAR AT 0:13

मन मटमैला, ख़्वाब सुनहरा; दिल पर पहरा किसका है!
कोई मुझको नाम बताये, प्यार ना जिसका बिसरा है.
आंखें शबनम बनकर बरसीं निशा जली उडुगन जैसी!
सारी उमर वो पास रहा पर एक पल को विरहा तरसी.
जब ये सांसें उखड़ रही होंगी मेरी सब गुम होगा,
एक तमन्ना रह जाएगी, अब कौन मिलेगा फिर तुम सा!
#ishq

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27 MAR AT 2:49

ये युग अपने अन्तर्मोहों में सिमटा,
पूंजीवाद की नीयत का दस्तूर रहा है.

शोर मचा है चारों ओर गणराज्य अलहदा,
जनता से धोखा इसका उसूल रहा है.

धैर्य रखे कोई कितना कुछ जाने दे;
क्रांति ही तो इस माटी का मूल रहा है.

अब भी चुप्पी देश का बेड़ा गर्क करेगी,
भारत का भावी भविष्य ये भूल रहा है!

कंपनियों का राज गुलामी ले आया था,
सत्ता पर यकीन जनता की आंखों में धूल रहा है.

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