माना हमने , माना हमने की....
बेटी पारस है, बेटा लावारिस है
बेटी अंस है, बेटा कंस है
बेटी शान है, बेटा बेईमान है
बेटी मन है, बेटा म्रुत जीवन है
बेटी बाग है, बेटा पतझड़ है
बेटी दुआ है, बेटा बद्दूआ है
बेटी भाग्य है, बेटा कलंक है
बेटी संस्कृति है, बेटा विक्रुती है
बेटी हुइ तो स्वर्ग मिलेगा
बेटा तुमको बेच खाएगा
बेटी नाम कमाती है , बेटा खानदान डुबोता है
बेटी ... बेटी... बेटी... नाम काफी है लक्ष्मीका
बेटा रावण, कंस, दुर्योधन सब माने जाएंगे
आज हर घरमे एक बेटा या बेटी है..
कैसे पहचानोंगे लक्ष्मी या पनोती है..
है ईश्वर कीसीको भी बद्द दुआ मे बेटे देना
सिर्फ बेटीयां ही संसार चलाती है..
कास इस कलयुगी संसार मे बेटे को गरम दूध मे उबाल कर मार सकता
आज के कलयुगी संसार का यही सच है
बेटो की अंत ही रावण का अंत है..
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